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    नोटबंदी के पांच साल बाद क्या बदला? नकदी और काले धन पर क्या हुआ असर? जानें यहां


    भातरीय अर्थव्यवस्था में नकदी का बोलबाला कायम है। नोटबंदी के पांच साल बाद डिजिटल भुगतान में वृद्धि के बावजूद चलन में नोटों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। हालांकि, वृद्धि की रफ्तार धीमी हुई है।

    भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के हिसाब से 4 नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, जो 29 अक्तूबर, 2021 को बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गए। आरबीआई के मुताबिक, 30 अक्तूबर, 2020 तक चलन में नोटों का मूल्य 26.88 लाख करोड़ रुपये था। 29 अक्तूबर, 2021 तक इसमें 2,28,963 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई।

    वहीं, सालाना आधार पर 30 अक्तूबर, 2020 को इसमें 4,57,059 करोड़ रुपये और इससे एक साल पहले एक नवंबर, 2019 को 2,84,451 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। इसके अलावा चलन में बैंक नोटों के मूल्य और मात्रा में 2020-21 के दौरान क्रमशः 16.8 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि 2019-20 के दौरान इसमें क्रमशः 14.7 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। दरअसल, कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने एहतियात के रूप में नकदी रखना बेहतर समझा। इसी कारण चलन में बैंक नोट पिछले वित्त वर्ष के दौरान बढ़ गए।

    डिजिटल लेन-देन में भी बड़ा उछाल

    नोटबंदी के पांच साल के बाद नकदी का चलन जरूर बढ़ा है लेकिन इस दौरान डिजिटल लेनदेन भी तेजी से बढ़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। इन सबके बावजूद चलन में नोटों का बढ़ना धीमी गति से ही सही, लेकिन जारी है।

    कोरोना ने नगदी का इस्तेमाल बढ़ाया

    विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते इसमें और तेजी आई क्योंकि लॉकडाउनके चलते अधिक से अधिक लोग नगदी की व्यवस्था करने लागे ताकि ग्रॉसरी व अन्य जरूरी चीजों के लिए भुगतान किया जा सके। इससे नकदी का चलन बढ़ा है। आरबीआई का मानना है कि नॉमिनल जीडीपी में बढ़ोतरी के साथ सिस्टम में नगदी भी बढ़ेगी। त्योहारी सीजन में नकदी की मांग अधिक बनी रही क्योंकि अधिकतर दुकानदार नकद लेन-देन पर निर्भर रहे।

    500 रुपये और 2000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी बढ़ी

    मूल्य के संदर्भ में, 500 रुपये और 2,000 रुपये के बैंक नोटों की हिस्सेदारी 31 मार्च, 2021 तक प्रचलन में बैंकनोटों के कुल मूल्य का 85.7 प्रतिशत थी, जबकि 31 मार्च, 2020 को यह 83.4 प्रतिशत थी। हालांकि, 2019-20 और 2020-21 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड और सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के पास 2,000 रुपये के नोट के लिए कोई अलग से मांग नहीं रखा गया था।

    आठ नवंबर, 2016 को की गई थी नोटबंदी

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को आधी रात से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी, जो उस समय चलन में थे। इस निर्णय का प्रमुख उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाना था। वित्त वर्ष 2020-21 में चलन में बैंक नोटों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह महामारी रही। महामारी के दौरान लोगों ने सावधानी के तौर पर अपने नकदी रखी।


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