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    गांधीवादी सुब्बाराव का निधनः एमपी, यूपी व राजस्थान में डकैतों के आतंक को खत्म करने में ऐसे निभाई भूमिका


    राजस्थान के जयपुर में 93 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले एसएन सुब्बाराव की मध्य प्रदेश की चंबल घाटी में डकैतों के आतंक को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के सहयोगी रहे सुब्बाराव ने एमपी, यूपी और राजस्थान में आतंक मचाने वाले डाकू मोहरसिंह, माधो सिंह सहित करीब 600 डकैतों को सरेंडर करने के लिए प्रेरित किया था। इसके बाद उन्होंने मुरैना जिले के जौरा में गांधी सेवा आश्रम बनाकर मध्य प्रदेश को गांधीवादी विचारधारा वाले लोगों को जोड़ने का केंद्र बनाया। उनके पार्थिव शरीर को गुरुवार को लाकर यहीं पर पंचतत्व में विलीन किए जाने की चर्चा है।

    1954 से मध्य प्रदेश से जुड़ा नाता
    पद्मश्री डॉ एसएन सुब्बाराव 7 फरवरी 1929 को कर्नाटक प्रदेश के बेंगलुरु में जन्मे और गांधी के विचारों से प्रभावित होकर 13 वर्ष की उम्र से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गए थे। कई बार जेल भी गये। गांधीवादी विचारों को पूरे देश भर में स्थापित करने के लिए सन 1954 में चंबल घाटी में कदम रखा।1964 में मुरैना जिले की जौरा तहसील में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की और यहां पर शिविर आयोजित कर युवाओं को जोड़ने का काम किया। यही वजह है कि आज की कई परिवार गांधी आश्रम में खादी के वस्त्र निर्माण कर अपना रोजगार पा रहे है।

    हाफ पेंट और खादी की शर्ट थी पहचान
    पूरी देश और दुनिया में प्रख्यात गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाली डॉक्टर सुब्बाराव की पहचान आप पेंट और खादी की शर्ट थी। डॉ सुब्बाराव हुए विश्व भर में गांधीवादी विचारधारा का प्रचार करते थे और यही वजह है कि जब भी वह देश के बाहर जाते थे तभी भी हाफ पेंट और खादी की शर्ट पहनते थे। लोग उन्हें भाई जी के नाम से जानते थे। उन्होंने अपने जीवन में गांधी की विचारधारा के अलावा किसी को महत्व नहीं दिया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की सहभागी भी रहे और कई बार जेल भी गये। 

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